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मोदी जी जरा इनकी भी खबर लें

AGLI DUNIYA carajeevgupta.blogspot.in
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पिछले डेढ़ साल के शासन मे प्रधानमंत्री मोदी ने अपना काफी समय विदेश यात्राओं मे लगाया है जिससे देश की छवि और गौरव दोनो मे ही इज़ाफा हुआ है-देश मे वापस आने के बाद भी मोदी जी जिस तरह से जनहित और विकास के कामों मे अपना समय लगाने की कोशिश कर रहे हैं, उस सब से कुछ लोगों को काफी तकलीफ हो रही है. इन लोगों की तकलीफ पूरी तरह से गलत भी नही कही जा सकती. विदेश यात्राओं से देश मे जो निवेश आ रहा है या जो छवि मे सुधार हो रहा है, वह अगर पिछले 60 सालों के कुशासन मे नही हुआ तो और 2-3 साल नही होगा तो कोई पहाड़ थोड़े ही टूट पड़ेगा-इसी तरह देश की विकास की योजनाएं जहां पिछले 60 सालों मे नही लागू की गयी, वहा 2-4 साल का और विलंब हो जायेगा तो कौन सी आफत आ जायेगी. संभवत् यही विचार हमारे उन तथाकथित “बुद्धिजीवियों” का है जिनमे कुछ स्‍व-घोषित लेखक,वैज्ञानिक,इतिहासकार,फ़िल्मकार,अभिनेता और सामाजिक कार्यकर्ता भी शामिल है.

इन लोगों का मानना यह है कि यह देश यकायक पिछले डेढ़ साल के अंदर “असहिष्णुता” की पराकाष्ठा पार कर गया है-इसका कोई सबूत इन लोगों के पास नही है-जो सुबूत उपलब्ध हैं, वे यह बताते हैं कि पिछले 60 सालों के कुशासन मे यह देश जितना “असहिष्णु” था और जिन कारणो से था, वे आज के हालात मे मौजूद ही नही हैं. आज ना तो 1975 की एमर्जेन्सी लगाकर मानवाधिकारों का हनन किया जा रहा है, ना प्रेस की आज़ादी पर रोक लगाई जा रही है और ना ही विपक्षी राजनेताओं को जेलों मे ठूँसा जा रहा है. 1984 जैसे दंगे भी आज नही हो रहे हैं और जनता की गाढ़ी कमायी को लूटते हुये अरबों खरबो के घोटालों की भी आजकल कोई खबर नही आ रही है. फिर ऐसा क्या हो गया पिछले 18 महीनो मे कि इन “बुद्धिजीवियों” की अचानक “बुद्धि-भ्रष्ट” हो गयी और इन्हे देश “असहिष्णु” लगने लगा.इस सवाल का जबाब में अपने कई पिछले लेखों मे दे चुका हूँ- उन्ही को संक्षेप मे नीचे प्रस्तुत कर रहा हूँ :

1. पिछले 18 महीनों मे यह पहली बार हुआ है कि सीमापार से आतंकवादियों को या तो देश मे घुसने ही नही दिया जाता है और अगर घुस गये तो या तो उन्हे पकड लिया जाता है या मार गिराया जाता है. जो लोग इन आतंकवादियों के परम-हितैषी हैं, उनके लिये तो निश्चित रूप से देश मे “असहिष्णुता” बढ गयी है.

2. पिछले 18 महीनो मे यह पहली बार हुआ है कि देश के किसी भी हिस्से मे सीमा पार से आये हुये आतंकवादी, निर्दोष लोगों पर हमला करके उनकी ज़ान लेने मे कामयाब नही हो सके हैं और ना ही बम धमाके कर सके हैं. जो लोग इन आतंकवादियों के अभिन्न मित्र हैं, उनके लिये वास्तव मे “असहिष्णुता” बहुत अधिक बढ गयी है.

3. पिछले 18 महीनो के दौरान देशद्रोही आतंकवादी याकूब मेमन को फांसी लगा दी गयी. इस आतंकवादी को बचाने के लिये इन बुद्धिजीवियों और उनके सहयोगियों ने ना सिर्फ राष्ट्रपति से गुहार लगाई, बल्कि यह लोग रात के दो बजे सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस के घर उनकी नींद हराम करने जा पहुंचे. क्योंकि यह लोग उसे बचाने मे नाकाम रहे, इन लोगों का यह सोचना जायज है कि यह देश पिछले 18 महीनों मे “असहिष्णु” हो गया है.

4. इन तथाकथित बुद्धिजीवियों और इनके यारों दोस्तों ने विदेशी सहायता से बहुत सारे NGO भारत मे अवैध तरीके से चला रखे थे, जिन्हे पिछले 18 महीनो के दौरान या तो बंद कर दिया गया है या फिर उन पर कठोर कार्यवाही की गयी है. इसके चलते भी इन लोगों का यह मानना जायज लगता है कि देश मे यकायक “असहिष्णुता” बढ गयी है.

मजे की बात यह है कि पी एम मोदी अपनी व्यस्तता की वजह से इन लोगों की ठीक से “खबर” नही ले पा रहे है और उसकी वजह से यह लोग काफी मायूस होकर गाहे बगाहे इस “असहिष्णुता” के मुद्दे को उठाकार देश मे अपनी मौजूदगी का अहसास कराते रहते हैं. अब समय आ गया है कि मोदी जी अपने सब काम धंधे छोड़कर पहले इन लोगों पर ध्यान दें. इसी उद्देश्य से एक ऑनलाइन पिटीशन मोदी जी को भेजने का फैसला किया गया है, जिसमे उनसे कहा गया है कि वह इन लोगों की पीड़ा और दुख दर्द को समझने के लिये सरकारी एजेंसियों को इनकी “सेवा और खातिरदारी” मे लगा दें जो इनसे मिलकर यह पूछताछ करेंगी कि यह “असहिष्णुता की नौटंकी” वे लोग देश मे ही मौजूद विपक्षी दलों के इशारे पर कर रहे हैं या फिर देश से बाहर बैठे हुए अपने आकाओं के इशारे पर. आप लोग भी इस ऑनलाइन पिटीशन का समर्थन करके अपनी राय जाहिर कर सकते हैं. ऑनलाइन पिटीशन पर जाने के लिये लिंक नीचे दिया जा रहा है. कृपया इस लिंक पर जाएं, पिटीशन को पढ़ें और अपने हस्ताक्षर भी ऑनलाइन ही कर दें ताकि मोदी जी देश से “असहिष्णुता” को हटाने का कोई स्थायी हल खोज सकें.
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To sign the online petition addressed to PM Modi, kindly visit the following link :
https://change.org/p/prime-minister-of-india-government-must-investigate-real-intentions-of-intellectuals-on-rising-intolerance

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