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अदालतों में जजों की कमी का पूरा सच

AGLI DUNIYA carajeevgupta.blogspot.in
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पिछले कुछ समय से अदालतों मे जजों की कमी का मामला जोर शोर से गरमाया हुआ है और भारत के मुख्य न्यायाधीश कई बार इस बात को लेकर केन्द्र सरकार से अपनी नाराज़गी जता चुके हैं कि सरकार अदालतों मे जजों की नियुक्ति को लेकर उतनी सक्रिय नही है, जिसके चलते अदालती काम काज मे सुस्ती का माहौल देखा जा रहा है.सरकार और न्यायपालिका के बीच चल रहे विवाद के पीछे का सच यह है कि पिछले 70 सालों से देश मे जजों की नियुक्ति जिस तरीके से होती रही है, उसमे पारदर्शिता का पूरी तरह अभाव है और जो लोग इन जजों की नियुक्ति करते रहे हैं, उन्हे छोड़कर और किसी को यह नही मालूम होता है कि आखिर इन जजों की नियुक्ति किस आधार पर की गयी है. सुप्रीम कोर्ट ने पिछले 70 सालों मे जजों की नियुक्ति के तरीके को पारदर्शी बनाने के लिये अगर कोई प्रभावी कदम उठाये होते तो आज जो हालात बने हुये हैं, उनसे बचा जा सकता था. नेशनल जुडिशियल अपायंट्मेंट्स कमीशन एक्ट, 2014 को हालांकि संसद के दोनो सदनो ने पास कर दिया था और इस कानून के लागू होने के बाद इस समस्या का हल लगभग निश्चित था लेकिन खुद सुप्रीम कोर्ट ने संसद के दोनो सदनों द्वारा पारित किये गये इस ऐतिहासिक कानून को रद्द कर दिया.

देश की अदालतों मे बकाया मामलों की दिन ब दिन बढ़ती संख्या और जजों की कमी के मामले का पूरा सच आखिर क्या है, उसे समझने के लिये हमे नीची लिखी हुई बातों पर भी गौर करना चाहिये :

1. देश की निचली अदालतों मे जजों को नियुक्त करने मे केन्द्र सरकार की कोई भूमिका नही होती है लेकिन निचली अदालतों मे भी लगभग 5000 जजों की नियुक्ति होनी अभी बाकी है- इसके लिये सुप्रीम कोर्ट ने अभी तक क्या पहल की है ? क्योंकि ज्यादातर लंबित मामले निचली अदालतों मे हैं, हाइ कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट मे नही.

2. जब देश मे सभी उच्च अधिकारियों की नियुक्ति संघ लोक सेवा आयोग द्वारा बेहद पारदर्शी तरीके से होती आई है, तो सुप्रीम कोर्ट ने  जजों की नियुक्ति के लिये संघ लोक सेवा आयोग की सेवाएं लेने का सुझाव या आदेश सरकार को आज तक क्यों नही दिया ?

3. केन्द्र और राज्य सरकारों के सभी संस्थानों मे जो सरकारी अवकाश साल भर मे होते हैं, अदालतें इस “अवकाश सूची” को ना मानकर अपने हिसाब से ग्रीष्मकालीन अवकाश और शीतकालीन अवकाश पर क्यों चली जाती हैं-अगर जजों की वास्तव मे कमी है, तब तो अदालतों को यह काम बिल्कुल नही करना चाहिये.

4. आज का दौर सोशल मीडिया और पारदर्शिता का है. संसद के दोनो सदनो की कार्यवाही का भी दूरदर्शन से सीधा प्रसारण होता है- अदालतों (सुप्रीम कोर्ट और हाइ कोर्ट) की कार्यवाही का सीधा प्रसारण अगर किया जाये तो उसमे क्या हर्ज है ? निचली अदालतों मे सी सी टी वी कैमरे लगाने पर भी क्या सुप्रीम कोर्ट को विचार नही करना चाहिये ?

5. व्यवहार मे यही देखा गया है कि जो मामले अदालतों मे लंबित पड़े हुये हैं, उनका संबंध जजों की सँख्या ने ना होकर, अदालतों की इच्छा शक्ति से ज्यादा होता है. अगर अदालतों की इच्छा शक्ति हो तो वे मामले निपटाने के लिये रात के दो बजे भी सुनवाई करके मामले निपटा देती हैं और देश और दुनिया के सामने एक मिसाल पेश करती हैं.

6. अयोध्या मे राम मंदिर का मामला हो या फिर निर्भया रेप काण्ड का मामला, इस बात से सभी लोग इत्तेफाक़ रखेंगे कि यह मामले जजों की कमी के चलते तो अदालतों मे लम्बित नही पड़े हुये है.

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