पुरानी कहावत है कि बेईमान आदमी से किसी को डर नही लगता है और ईमानदार आदमी से सभी डरते हैं. देश के पी एम नरेन्द्र मोदी की यही अटूट ईमानदारी आज भ्रष्टाचार के समुद्र मे गोते लगा चुके विपक्षी नेताओं के गले नही उतर रही है और यह लोग पागलपन की हद तक जाकर मोदी के खिलाफ कुछ ना कुछ ऐसा षड्यंत्र 24 घंटे 365 दिन रचने मे लगे हुये हैं, जिससे मोदी भले ही आरोपित हो या ना हों, देश की जनता को यह लोग अपने दुष्प्रचार से भ्रमित करने मे उसी तरह कामयाब हो जाएं, जैसा कि यह लोग पहले भी होते आये हैं.
जनहित याचिकाओं को एक व्यापार की तरह चलाने वाले तथाकथित वकील प्रशांत भूषण सबसे पहले अपनी “बेबुनियाद जनहित याचिका” लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुंचे थे और सुप्रीम कोर्ट से यह गुहार लगाई थी कि आदित्य बिरला ग्रुप और सहारा ग्रुप पर मारे गये छापों के दौरान कुछ कागज ऐसे मिले हैं, जिनमे “गुजरात सी एम” का नाम लिखा हुआ है, लिहाज़ा जो गुजरात के उस समय सी एम थे, वह आज देश के पी एम हैं, और इसीलिये सुप्रीम कोर्ट एक SIT गठित करके देश के पी एम के खिलाफ इस भ्रष्टाचार की जांच करने का आदेश करे.
सुप्रीम कोर्ट ने इस तथाकथित जनहित याचिका को पूरी तरह बेबुनियाद,मनगढ़ंत और काल्पनिक बताते हुये जो कुछ कहा वह यह है : “अगर इस तरह की सामग्री के आधार पर किसी तरह की जांच या कार्यवाही की जाती है तो दुनिया मे किसी भी व्यक्ति के खिलाफ भ्रष्टाचार का आरोप लगाकर जांच की मांग की जाने लगेगी. कोई भी शरारती व्यक्ति अपने कंप्यूटर मे किसी का भी नाम लिख सकता है और आप उसकी जांच के लिये सुप्रीम कोर्ट आ जायेंगे ? ” अदालत ने भूषण को जबरदस्त फटकार लगाते हुये कहा कि अगर वह वाकयी जांच कराना चाहते हैं तो कोई सुबूत इस अदालत मे अगली तारीख तक पेश करें. सर्वोच्च न्यायालय की यह टिप्पणी किसी को भी शर्मसार करने के लिये काफी है लेकिन भूषण, केजरीवाल और राहुल गाँधी जैसे लोगों से इस तरह की आशा करना व्यर्थ है क्योंकि “बेशर्मी” ही इन लोगों की जमा पूँजी है.
आइए अब आपको इस मामले से जुड़े कुछ और दिलचस्प तथ्य बताते हैं, जिन्हे पढ़कर आपको यह मालूम पड जायेगा कि भूषण,केजरीवाल और राहुल गाँधी आखिर कितने पानी मे हैं. अक्टूबर 2013 मे जब केन्द्र मे कांग्रेस की सरकार थी, उस समय सी बी आई ने UPA सरकार के कोयला घोटाले के सिलसिले मे आदित्य बिरला ग्रुप पर रेड मारी थी. इस रेड मे कंप्यूटर पर एक शीट पर यह लिखा हुआ था-” Gujarat CM-25 Crore.12 Paid.Rest?”
इस सम्बंध मे दो बाते ध्यान देने योग्य है, पहले तो यह मामला किसी औद्योगिक इकाई की पर्यावरण मंजूरी से जुड़ा हुआ था. पर्यावरण की मंजूरी देने मे ना तो गुजरात सरकार और ना ही गुजरात के किसी मंत्री या अधिकारी का कोई लेना देना होता है. इस मामले मे अगर किसी तरह की रिश्वत का लेन देन हुआ भी होगा तो वह केन्द्र सरकार के पर्यावरण मंत्री और कम्पनी के बीच हुआ होगा क्योंकि पर्यावरण सम्बंधी सभी मंजूरी केन्द्र सरकार के अंतर्गत आती है. सी बी आई को जब कुछ समझ नही आया तो उस ने यह कंप्यूटर शीट आयकर विभाग को आगे की कार्यवाही करने के लिये सौंप दी. जब आयकर विभाग ने आदित्य बिरला ग्रुप के CEOअमिताभ से यह पूछा कि शीट पर जो GujaratCM लिखा है,वह कौन है, तो उसने जबाब मे बताया कि GujaratCM का मतलब Gujarat Alkalies and Chemicals Limited से है.
दूसरी अहम बात यह है कि अगर यह मामला गुजरात के तत्कालीन सी एम मोदी से जुड़ा था, तो केन्द्र की सरकार को तो मोदी पर अपनी पूरी ताकत के साथ अक्टूबर 2013 मे ही टूट पड़ना चाहिये था और सी बी आई और आयकर विभाग के साथ साथ सभी सरकारी अजेंसियों को मोदी के पीछे ही लगा देना चाहिये था. आखिर कांग्रेस सरकार पिछले 12 सालों से मोदी के पीछे पड़ी ही हुई थी और उनको लगातार झूठे और मनगढ़ंत मामलों मे फंसा रही थी. फिर इस मामले मे UPA सरकार ने मोदी पर मेहरबानी क्यों दिखाई ?
अब दुबारा से हम भूषण वकील के निराधार आरोपों पर आते हैं. भूषण को जब सर्वोच्च न्यायालय ने फटकार लगाई तो भूषण का नशा तो शांत हो गया लेकिन केजरीवाल जी ने उन्ही बेबुनियाद आरोपों को फिर से लपक लिया और जनता को हमेशा की तरह एक बार से बेबकूफ बनाने की कोशिश कर डाली. राहुल गाँधी ने तो शायद यह झूठे और मनगढ़ंत आरोप देश के सबसे अधिक ईमानदार राजनेता पी एम मोदी पर लगाने से पहले अपनी पार्टी के नेताओं से भी विचार विमर्श नही किया, वर्ना उन्हे यह मालूम होता कि जिस फर्ज़ी लिस्ट मे “गुजरात सी एम” लिखा हुआ है,सहारा ग्रुप की उसी लिस्ट मे दिल्ली की तत्कालीन सी एम शीला दीक्षित का भी नांम लिखा हुआ है. सबसे बड़ी बात यह है कि जैन हवाला मामले मे सुप्रीम कोर्ट यह बात साफ शब्दों मे कह चुका है कि सिर्फ किसी काग़ज़, डायरी या शीट पर किसी का नाम भर लिखा होने से ,उस व्यक्ति के खिलाफ कोई मामला बनाकर जांच नही की जा सकती है. यह तो ऐसे हो गया कि किसी भी व्यक्ति के यहाँ कोई छापा पड़े और किसी काग़ज़ पर अगर यह लिखा हो कि राजीव गुप्ता ने 25 करोड़ रुपये लिये तो बस उसी पल सब के सब भ्रष्ट लोग राजीव गुप्ता के खिलाफ भ्रष्टाचार की जांच की मांग करते हुये सुप्रीम कोर्ट पहुंच जायेंगे.
जब 2012 मे हिमाचल प्रदेश के कांग्रेसी मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह का नाम इसी तरह के एक मामले मे आया था तो खुद कांग्रेसी नेताओं ने सुप्रीम कोर्ट के इसी जैन हवाला केस का हवाला देते हुये उनका यह कहकर बचाव किया था कि सिर्फ किसी कागज पर नाम लिखा होना किसी तरह की जांच के लिये पर्याप्त सबूत नही है.
This website uses cookie or similar technologies, to enhance your browsing experience and provide personalised recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy. OK
Read Comments